संपादकीय जायलैंड इधर भी है,उधर भी

 


********

मै सिनेमा कम ही देखता हूँ,लेकिन फिल्मों को लेकर मेरी दिलचस्पी कभी कम नहीं रही।इन दिनों अमेरिका ने मुझे एक बार फिल्मों के बारे में गुंजाइश दी है।अमेरिका में मै ढेर सी फिल्में देखता हूँ।मुझे आज भारत की नहीं बल्कि पडौसी पाकिस्तान की फिल्म ' जायलैंड' के बहाने उन प्रवृत्तियों की बात करना चाहता हूँ।

जायलैंड पर बात करते वक्त मुझे अपने शहर और मुल्क के मशहूर शायर स्वर्गीय निदा फ़ाज़ली बेहद याद आ रहे हैं।निदा साहब ने वर्षों पहले लिखा था कि - 

 ‘इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी 

अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी 

*

ख़ूँ-ख़्वार दरिंदों के फ़क़त नाम अलग हैं 

हर शहर बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी 

*

पाकिस्‍तान की हालत संकीर्णता के मामले में हिंदुस्तान से कम नहीं है।हिंदुस्तान में जिस तरह 'लाल सिंह चड्ढा' के दुश्मन मौजूद हैं उसी तरह पाकिस्तान में 'जॉयलैंड ' के।जॉयलैंड फ‍िल्‍म को ऑस्कर 2023 के लिए नामित किया गया लेकिन चंद सिरफिरों के विरोध के बाद इस फिल्म पर रोक लगा दी गई।

हिंदुस्तान में कला के विविध रूपों का विरोध करने वालों की एक पूरी जमात है जो भोपाल में 'आश्रम 'का सेट फूंक सकती है।लाल सिंह चड्ढा को सिनेमाघरों में चलने से रोक सकती है।कला विरोधियों के सिर्फ नाम और चेहरे बदलते हैं।वे यहाँ भी हैं,वहाँ भी।

पाकिस्तान की फ‍िल्‍म  'जॉयलैंड ' की दुनियाभर में  तारीफ हो रही है।प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल में जॉयलैंड ने अवॉर्ड जीते, लेकिन पाकिस्‍तान में कुछ लोगों को इसका कलेवर पसंद नहीं आया।फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही इन लोगों ने‘तूफान' खड़ा  कर‍ दिया।विरोध बढते देख पाकिस्‍तान के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने यह सोचे बगैर फ‍िल्‍म को बैन कर दिया जबकि उसी ने तो फ‍िल्‍म को रिलीज होने का सर्टिफ‍िकेट दिया था। 

बात बहुत पुरानी नहीं है।इसी महीने 4 नवंबर को जॉयलैंड का ट्रेलर रिलीज किया गया था।ट्रेलर आते ही विरोध शुरू हो गया। जमाते इस्लामी को फ‍िल्‍म में दिखाई गई कुछ बातें पसंद नहीं आईं।उन्‍होंने पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड पर दबाव बनाना शुरू  कर दिया।दबाव में आए बोर्ड और पाकिस्‍तान के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने फ‍िल्‍म को बैन करने में ही भलाई समझी।

मजे की बात ये है कि 'जॉयलैंड' में किन्नर की भूमिका पर आपत्ति करने वाले जमात इस्लामी के मुश्ताक़ अहमद ने फ़िल्म  देखी ही नहीं है,लेकिन उनका मानना है कि यह बुनियादी तौर पर समलैंगिकता संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है।विरोधी इसे सांस्कृतिक आतंकवाद कहते हैं।

"फ़िल्म तो 18 नवंबर को रिलीज़ होने वाली थी। फ़िल्म का तो अभी सिर्फ़ ट्रेलर जारी हुआ था,विरोधी फिल्म की कथा वस्तु से ही नहीं बल्कि हीरो के नाम से भी नाराज़ हैं।हीरो का नाम हैदर है,हमें इस पर भी आपत्ति है।"विरोधियों के मुताबिक यह मर्द और मर्द के लव अफ़ेयर पर केंद्रीय कहानी है इसीलिए यह हमारे मूल्यों और परंपराओं के ख़िलाफ़ एक एलान-ए-जंग है।”

भारत में लाल सिंह चड्ढा ही नहीं बल्कि उससे पहले भी दर्जनों फिल्मों का विरोध उनकी विषय वस्तु,वेशभूषा और लुक को लेकर हो  चुका है और हो रहा है।ऐसी फिल्मों के विरोध से किसे,क्या हासिल होता है,ये ऊपर वाले को ही पता है।नीचे जो लोग हैं वे केवल अंधे लोग हैं।भारत में ऐसे लोगों को अंधभक्त कहते हैं।

आज के जमाने में किसी फिल्म को कहने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है,लेकिन वे प्रतिबंधित हो नहीं पाती।तमाम माध्यम और मंच हैं जो ऐसी फिल्मों को दिखाते हैं।जाॅयलैंड भी दिखाई जाएगी।दिखाई जाना चाहिए।क्योंकि कट्टरता का मुकाबला हर जगह किया जाना चाहिए फिर चाहे यहाँ हो या वहाँ।समलैंगिकता पर भारत में तमाम फिल्में बनी हैं।यहाँ भी उन्हें लेकर हंगामा हुआ किन्तु अंततः कला जीती,विरोधी हारे।


लेखक -राकेश अचल (साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार) फोटो rakesh-achal 

0/Post a Comment/Comments