मध्यप्रदेश में साल-दर साल सड़क हादसों की स्पीड बढ़ती जा रही है। जब रोड एक्सीडेंट होते हैं,तो सरकारों की ये तमाम कोशिशें,दावे और वादों की पोल खुल जाती है।मध्यप्रदेश में हाल ही में कुछ दिनों पूर्व ही बरसात खत्म हुई है,भारी बारिश के बाद अब पूर्व से ही प्रदेश की खस्ताहाल सड़कें अब भारी बारिश के बाद और भी खस्ताहाल हो गई है।सड़क हादसों में मप्र देश में दूसरे नंबर पर है,जबकि तमिलनाडु पहले पर।मप्र में हर साल 50 हजार सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।इसमें आधी से ज्यादा यानी 24 हजार दुर्घटनाएं और 6 हजार मौतें सीधी सड़कों पर हो रही हैं,वहीं 1219 मौतें घुमावदार रोड पर।पुल,पुलिया, सड़कों के गड्ढे,खड़ी चढ़ाई और निर्माणाधीन सड़कों पर होने वाले हादसे सीधी सड़क की तुलना में काफी कम हैं।
पुरानी गाड़ियों से मौतें
पाँच साल से कम पुरानी गाड़ियों से 3408 और 5-10 साल तक के वाहनों से 2,762 मौतें हुई हैं। यह 2020 में हुई कुल मौतों का 45 से 50 फीसदी है।
सीट बेल्ट,हेलमेट ना होने से मौतें
प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक हेलमेट नहीं पहनने से 3,933 मौतें हुईं। इसमें 2646 ड्राइवर और 1,287 पैसेंजर की मौत हुई। सीट बेल्ट नहीं लगाने से 1,396 मौतें हुई हैं। 762 ड्राइवर और 634 पैसेंजर की मौतें हुईं।
नेशनल-स्टेट हाईवे पर मौतें
एनएच पर 2019 में 5977, 2020 में 5941 मौतें हुईं। बाकी सड़कों पर 2019 में 5272 और 2020 में 5200 मौतें हुईं।
नही हुआ सड़क आयोग का गठन
मध्यप्रदेश में करीब 10 हजार किलोमीटर सड़के खस्ताहाल हो गई है।मध्यप्रदेश में लगभग 15 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी सड़के है,जिसमें से लगभग 10 हजार किलोमीटर सड़के खराब गुणवत्ता तथा रख रखाव के अभाव में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है।प्रदेश में सड़को के निर्माण की गुणवत्ता तथा रख रखाव में लापरवाही पर निगरानी करने एवं इसकी शिकायत करने हेतु कोई भी एजेंसी नही है।वहीं प्रदेश में सड़कों की सुध लेने के लिए सड़क आयोग का गठन भी अब तक मध्यप्रदेश शासन ने नही किया है,जिसके नतीजन प्रदेश की सडकों की मरम्मत जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही करने उनका कोई धनी धौरी दिखाई नही दे रहा है।
पवन कौरव (समाजसेवी एवं पत्रकार,गाडरवारा) फोटो PAVAN
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