मुंडन में
ज्योनार में
रोज किसी त्योहार में
झुंड इन औरतों के
दिखते हैं अक्सर
बेटे की, पति की
घर के मर्दों की सलामती के लिए
दिन दिन भूख स्वाहा करती हैं
साँझ को मांग उधार
पकवान भी तलती हैं
देर से शराब, जुआ खेल कर जब आते हैं मरद
उनके खाने के बाद ही पारण करती है व्रत को
कमाल की आस्था है इनकी
और जीवटता अतुलनीय
अपनी इच्छाओं की दे आहूति
हर तर्क को ध्वस्त करती अग्नि शिखाएं लगती हैं मुझे
जो लपट लपक कर घुटन के धुएँ से सींचती हैं भावुक मन का आकाश ।
डॉ मेनका त्रिपाठी
Post a Comment