अकेला ही चला था मैं
मानवता की एक चाह में,
हौंसले बुलंद थे मेरे
साथी मिलते गए राह में|
किसी ने दिया विश्वास
तो किसी ने दिया ताना,
सबको यूँ एकजुट कर
मुझे था परिवार बनाना |
विचारों से विचार मिले
बन गया मेरा परिवार,
मुल्क की हिफाज़त में
बीत गए कितने रविवार |
दीप से दीप जलाएँगे
अंधियारा ना होने देंगे,
झुग्गी बस्तियों में किसी को
भूखा तो ना सोने देंगे l
वतन के रखवाले हैं हम
जान पर खेल जाएँगे,
हम हैं सच्चे हिंदुस्तानी
दुनिया को दिखलाएंगे l
रैना मुखीजा, अलवर (राजस्थान )
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