सुनो ..

सुनो ..

कैसा महसूस होता हैं

बिना खिड़की के कमरे में रहना ...

बिना दस्तक के इंतजार में रहना...

खामोशी से मर जाना. 

बिना किसी से कुछ कहे...

बिना किसी से कुछ माँगे...

जिन्दगी से कोई 

शिकवा किये बगैर. 

कैसे होते हैं

ये लोग

डूब गया पूरा गाव

छीज छीज पर

तुम्हें कोई मतलब ही नहीं.

क्या सूझा मुझे भी कौतुक कि 

तुमसे दिल लगा बैठी. 

देखी हैं देर रात 

नीलकंठ की परछाई 

आया हैं भूकंप 

आँखों के समंदर में 

उगेगा कोई नया देश अब

होगी जिसमे जगह 

मुझ जैसे निष्कासित 

लोगों के लिये.....

...रितु शर्मा.....

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