सुकून।।।
बरसों बंजर वसुधा सावन सिक्त हुई हो।
युग योगिनी जैसे आराध्य से मिली हो।
चकवा चकई ने स्वाति की बूंदों का पान किए हो।
रिसते घावों पर जैसे कोई हुक्मी मरहम लगा गया हो।
घोर अमावश मे कोई जैसे दिया चांद पर जला गया हो।
विष व्यापित व्योम में जैसे कोई अमृत घट बदरी बांध गया हो।
मन पतझर वन में जैसे कोई बिगुल वसंतोत्सव का बजा गया हो।
कोलाहल के कोहरे में जैसे कोई
नूर ए रौ सुकून की बरसा गया हो।
ठीक वैसा ही है
तुम्हारी एक झलक।
एक प्यारी मुस्कान।
सुकून । सुकून।सुकून।
अब मौत भी मिल जाए तो उसका भी वरण कर लेंगे।
कुमुद"अनुन्जया" ।
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