उम्र के इस असहज प्रतीत होते दौर में
जहाँ कुछ खूबसूरत यादों का साथ है
जीने का वो ढंग अब नहीं रहा
बीतते वक्त के साथ जीने का
हर अंदाज बदल गया
ऐसे में खुद के अस्तित्व को खोजती मैं
शान्त कहीं वीराने में तनहाइयों की चादर ओढ़े
दूर कहीं स्वतन्त्र फैले आसमान के तले
जर्रे-जर्रे को महसूस करने को आतुर रूह मेरी
सुकून की एक माला गूंथने को मचलती
मेरे ह्रदय की एक चाह मुझे
ले जा रही है उस ओर शायद वहाँ
जहाँ मेरा जाने का एक जमाने से मक्सद रहा हो
हालांकि जिन्दगी को बाहरी तौर-तरीकों से जीने में उस समय
मशरूफ थी मैं
अब तक वक्त कहाँ था ये सोचने-समझने का
पर एहसासों की जिस पगडंडी में आज मैं खड़ी हूँ
वहीं से मुझे चलते-चलते पहुँचना है
सच्चे सुकून रूपी पनघट पर
मालूम है मुझे भागते मन की
एकाग्रता जरूरी है इसमें
और परमात्मा के स्वरूप को स्पर्श
करने की अनुभूति का पंथ निहारे
मेरी ये व्याकुल आंखें
अपनी बरसों की प्यास बुझाने को
बड़ी उम्मीद से निकल पड़ी हैं
यूँ तो नश्वर है शरीर
और इसका अंत निश्चित है
पर आत्मा के आध्यात्म का सच जानना है मुझे
जीना चाहती हूँ प्रत्येक क्षण
मैं अद्भुत कल्पनाओं से उपजे
खूबसूरत विचारों संग
महान बनने के शौक में नहीं
सत्य रूपी सुन्दर ज्ञान को जानने की अभिलाषा है मेरी
और साहित्य से जुड़ना इसके लिए मेरी बहुत बड़ी विशेष उपलब्धि है।
उमा पाटनी (अवनि) , उत्तराखण्ड -पिथौरागढ़ /
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