मुख वसुधा का किया मलीन,
हंसती देखो पॉलीथीन।
बढ़ा धुंए का हाहाकार,
त्रस्त प्रदूषण से संसार।
कुटिल प्लास्टिक की घुसपैठ,
बन कर मालिक गई है बैठ।
थोड़ी सी सुविधा हमें देकर,
जीवन में हो गई है लीन।
मुख वसुधा का किया मलीन।
हम सा सर्प नहीं कोई होगा,
निज जीवन जो स्वयं डरेगा।
अपने ही भोजन में विष बोकर,
निधि अपनी अपने से खोकर।
अपने ही जीवन स्तंभों को,
स्वयं ही करते भूमिहीन।
मुख वसुधा का किया मलीन
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