मूक-व्यथा मैं किसे सुनाऊँ ?"



"---------------------------------- प्रीति राम की,समझ न पाऊँ। मूक -व्यथा मैं,किसे सुनाऊँ ? भक्त भीलिनी, पंथ बुहारे नयन नीर भर, बाट निहारे।। कंद-मूल फल, चखि-चखि डारे। सुमन बिछा पथ, राम पुकारे। प्रभु-पद-पंकज, कैसे पाऊँ ? मूक -व्यथा मैं, किसे सुनाऊँ ? उन्मादित से, बादल छाओ। सरस-नेह भू पर, छितराओ।। शुष्क -नयन की,प्यास बुझाओ। अब शबरी को, दरश दिखाओ। राम-कदम- रज, कैसे पाऊँ ? मूक -व्यथा मैं किसे सुनाऊँ ? सहसा कूल -सरित हरषाए। षटपद, सरसिज पर मँडराए।। सुरभित,पुष्पित,उपवन छाए। खग-कलरव-स्वर कर्ण सुहाए।। प्रेम-तृषित मन में अकुलाऊँ। मूक-व्यथा मैं किसे सुनाऊँ ? लखन-राम मूरति मन भाई। राम- चरण शबरी बिलखाई।। आँचल से आसन सुथराई। नेह-सने चुन, बेर खिलाई।। दुख-भंजन -पग, शीश नवाऊँ। मूक -व्यथा मैं किसे सुनाऊँ ? -डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना' वाराणसी (उ. प्र.) / 
 

 


 



 

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