**लाज बड़ी हठधर्मी है **

**लाज बड़ी हठधर्मी है **

 

चीथड़ों में सब ढका रहा 

पोशाकों  में   बेशर्मी   है ।

जानवरों में रहे  सुरक्षित 

इंसानों  में तन जख़्मी है ।

 

दर-दर ठोकर खाते रहते

खाक  छानते सड़कों पर ।

चोटों का कुछ असर नहीं

बस  भूख  बड़ी बेदर्दी है ।

 

राहू केतु शनि  सभी तो 

अगल -बगल ही रहते हैं ।

पर ऐसा  लगता है  जैसे 

कुछ और ग्रहों की गर्मी है ।

 

शाम- सबेरे भीख़  मांगते 

भरी    दुपहरी   सोते   हैं ।

रातों में  रखवाली   करते 

बस,लाज बड़ी हठधर्मी है ।

 

           ललिता नारायणी

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