कौंन है

कौंन है

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कौंन है मेरी नींदों में

कौंन है मेरे ख़्वाबों में

रात-दिन मैं ये सोचता हूँ

पर सामने वो नहीं आती है।

चंचल हैं उसकी आँखें

महकी-महकी सी साँसें

पल भर को आती बाहों में

ऐसा कब मुझको लगता है।

चूड़ी वो जब खनकाती है

रह-रहके वो सनकाती है

दूर चली जाती जब मुझसे

फिर पास नहीं वो आती है।

लेती है जब वो अंगड़ाई

बजती है दिल की शहनाई

खुशियाँ आती हैं आँगन में

ग़म का बादल छँट जाता है।

आती है वो जब घूँघट में

रहता हूँ मैं भी झटपट में

कितना हूँ मैं भी मूरख

देख नहीं पाता सूरत।

जान नहीं पाया उसको

देख नहीं पाया उसको

कौन है मेरे ख़्यालों में

कौन है मेरे ख़्वाबों में।

 

 'ऐनुल' बरौलवी

गोपालगंज (बिहार) ।

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