ह्रदय की प्रणयता का भाव खुद की अंतरात्मा के सँग मैं मिलूंगी पर ... खुद की चुनी दीवार पे लफ़्ज़ों के अंगार में मन के हर किरदार में ठंडी हर बयार में मिलूंगी हर खनकती आवाज में बहती नदियों की धार में ठहरी सांझों के दर्पण में ह्रदय के समर्पण में तस्वीर की मर्माहठ में हर शुभ की आहट में खनकती मुस्कुराहट में नहीं मिलूंगी पर कभी शब्दों के भरम जाल में दुनियावी जंजाल में .... कर्कश कृपाण में देह के मोहपाश में मरण के दुःख में अपने ही सुख में खोजना मुझे खुद की पहचान में चरित्र की आन में स्वाभिमान की शान में
- मधुलिका शुक्ला-
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