एक सुन्दर शाम बनना चाहते हैं।







एक सुन्दर शाम बनना चाहते हैं।

हम तुम्हारा नाम बनना चाहते हैं।

 

मुस्कुरा कर पढ़ सकोगे तुम जिसे

वो खुशनुमा पैगाम लिखना चाहते हैं।

 

उन निगाहों में बहुत गहराई थी

उन निगाहों में उतारना चाहते हैं।

 

भागती सी भीड़ में ठहरे हुए हम

थाम कर तुमको संभालना चाहते हैं।

 

संगमरमर पर पड़ी एक बूंद जैसे

फिर रुक कर फिसलना चाहते हैं।

 

आधी रात, आधा ख्वाब बुनकर

मुट्ठियों में चाँद भरना चाहते हैं।

, डॉ. आस्था त्रिपाठी,


 

 


 




 

Attachments area

 


 



 



0/Post a Comment/Comments