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बाहर लगा है अद्भुत मेला
खुद को न तू समझ अकेला
अपने साथ सदा तू रहता
मन के तम को तू ही हरता
खुद का तू है सच्चा साथी
जैसे साथ दीये के बाती
अन्दर तेरे अनंत प्रकाश
क्यों बाहर ढूंढे आकाश
जागृत करो आत्मज्ञान
निज शक्तियों का आह्वान
मार्ग करो अपना प्रशस्त
तेरा सूर्य न होगा अस्त
मन से न जाना तुम हार
रोज मनाओगे त्योहार।
रीमा पांडेय 1
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